1.काली रात थी खामोश पानी था
आँखे धुंधली थी और रास्ता अंजाना था
आगे सपनों की नगरी
हाथ मे रिश्तों की गठरी
थका हारा बरसों से प्यासा था
पर उस प्यास को बुझाने से हरदम मैं डरता था
उम्मीद की डोरी थामे आगे बढ़ा
तकदीर पर भरोसा कर कदम लिया
काँटों पर पैर छिल गये, ठंड से बदन काँप उठा
पर उम्मीद का साथ ना छोडा, तकदीर का भरोसा ना तोड़ा
आगे मंज़िल दिखी तो फूला ना समाया
पर गौर से देखा, तो जो सोचा वो ना पाया
पर उम्मीद का साथ ना छोडा, तकदीर का भरोसा ना तोड़ा
आगे बढ़ा तो सपनों का महल दिखा
हाँ रंग ज़रूर अलग था, नक्शा थोड़ा नया था
पर महल ये मेरा था, काला ही सही सपना ये अपना था
अब दुनिया मे मेरा एक ठिकाना था
जैसा भी हो ये उपर वाले का एक नज़राना था
क़ुबूल है क़ुबूल है ए उपर वाले तेरा ये नज़राना
अब तेरी माया का हो गया मैं भी दीवाना
2.
तुम्हारी खामोशियाँ, दिल का हाल बतलाए
तुम्हारी आवाज़,ज़ख़्म पे मरहम लगाए
दूरियाँ तुमसे, हसरतें बढ़ाए,
अब क्या करें, जब याद तुम्हारी आए.
बेरंग सी ज़िंदगी है, रंग की बौछार तो करो
अधूरे अपने सपने को, कभी तो पूरा करो
कभी पर्वतों से छलाँग लगा के तो देखो
दुनिया कितनी हसीन है, कभी आसमान से तो देखो
3.
अपनी खूबसूरती पर इतना घुमार ना करो,
कभी किसी दिलवाले से प्यार भी तो करो,
दिल की बात होंठों पे भी तो लाओ
हाय, कभी इन मखमली होंठों से प्यार का इज़हार तो करो
कुछ दिनों बाद
कभी किसी हुस्न वाली से प्यार का इज़हार ना करो,
अपने दिल पर, इतना गहरा भी वार ना करो,
चोट खाए हुए इंसान, अपनी तकदीर पर लानत ना करो,
जब किसी हीर से बात ना चली, तो फिर लैला से बात करो
No comments:
Post a Comment