कितनी शिद्दत थी, उस फ़नकार में
क्या अदा थी, उस कलाकार में
पर प्रेम की राह पर चलना, उसने कभी ना जाना
प्यार के फूल को कुचलना, उसने सही माना
अपने ही साए से डरता था वो
अपने ही ख़यालों से भिड़ जाता था वो
अपनों से जुदा रहता था जो,
परायों में अपनों को, क्यों खोजता था वो
किस शैतान को छुपाता था वो अपने इंसान में
कैसी गर्दिश थी उसके, उसके जी जान में
कितनी शिद्दत थी, उस फ़नकार में
क्या अदा थी, उस कलाकार में.
क्या अदा थी, उस कलाकार में
पर प्रेम की राह पर चलना, उसने कभी ना जाना
प्यार के फूल को कुचलना, उसने सही माना
अपने ही साए से डरता था वो
अपने ही ख़यालों से भिड़ जाता था वो
अपनों से जुदा रहता था जो,
परायों में अपनों को, क्यों खोजता था वो
किस शैतान को छुपाता था वो अपने इंसान में
कैसी गर्दिश थी उसके, उसके जी जान में
कितनी शिद्दत थी, उस फ़नकार में
क्या अदा थी, उस कलाकार में.