सर्दी की धूप हो, या चाँदनी की नूर
तारों के शहर मे मैं, और हो गयी, तू मशहूर
चुभते तेरे लबज़ सुन, आँखें, क्या बोली मुझसे
धत्त, ये आँसू कहाँ से आए बस ,अपने आप से
अपना रस्ता कब भूली तू, ए नादान
पहचान ना पाई कौन अपना, और कौन मेहमान
उस तरफ देखना कर दिया अब नज़रअंदाज़
जिस तरफ सुनूँ तेरी, ज़रा सी भी आवाज़
Crossing The Street
3 weeks ago