Wednesday, June 4, 2014

लौटा भी दो मेरा खोया वक़्त

लौटा भी दो मेरा खोया वक़्त,
लौटा भी दो मेरा खोया वक़्त,
जितना बचा, जीने दो,
जितना बचा, जीने दो.

उम्मीदों की पतंग जो उड़ाई थी,
तो कुदरत ने डोर ही काट दी,
गम की खाई में छलाँग लगाई तो,
ज़िंदगी ने कलाई थाम ली.

हर बंधन, वो रिश्ते, तोड़के,
अकेला, मंज़िल की आस में,
टूटे सपनों का हैं नक्शा हाथ में,
कदम हमदर्द की तलाश में.

नया रास्ता दिखने लगा,
नयी मंज़िलें आगे दिखीं,
अब ना कोई बैर हैं,
अपने हैं सब, ना कोई गैर हैं.